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मानसून सीजन में तेजी से बढ़ने वाली ये 5 अच्छी फसलें

मानसून सीजन में तेजी से बढ़ने वाली ये 5 अच्छी फसलें

मानसून का मौसम किसान भाइयों के लिए कुदरती वरदान के समान होता है। मानसून के मौसम होने वाली बरसात से उन स्थानों पर भी फसल उगाई जा सकती है, जहां पर सिंचाई के साधन नहीं हैं। पहाड़ी और पठारी इलाकों में सिंचाई के साधन नही होते हैं। इन स्थानों पर मानसून की कुछ ऐसी फसले उगाई जा सकतीं हैं जो कम पानी में होतीं हों। इस तरह की फसलों में दलहन की फसलें प्रमुख हैं। इसके अलावा कुछ फसलें ऐसी भी हैं जो अधिक पानी में भी उगाई जा सकतीं हैं। वो फसलें केवल मानसून में ही की जा सकतीं हैं। आइए जानते हैं कि कौन-कौन सी फसलें मानसून के दौरान ली जा सकतीं हैं।

मानसून सीजन में बढ़ने वाली 5 फसलें:

1.गन्ना की फसल

गन्ना कॉमर्शियल फसल है, इसे नकदी फसल भी कहा जाता है। गन्ने  की फसल के लिए 32 से 38 डिग्री सेल्सियस का तापमान होना चाहिये। ऐसा मौसम मानसून में ही होता है। गन्ने की फसल के लिए पानी की भी काफी आवश्यकता होती है। उसके लिए मानसून से होने वाली बरसात से पानी मिल जाता है। मानसून में तैयार होकर यह फसल सर्दियों की शुरुआत में कटने के लिए तैयार हो जाती है। फसल पकने के लिए लगभग 15 डिग्री सेल्सियश तापमान की आवश्यकता होती है। गन्ने की फसल केवल मानसून में ही ली जा सकती है। इसकी फसल तैयार होने के लिए उमस भरी गर्मी और बरसात का मौसम जरूरी होता है। गन्ने की फसल पश्चिमोत्तर भारत, समुद्री किनारे वाले राज्य, मध्य भारत और मध्य उत्तर और पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में अधिक होती है। सबसे अधिक गन्ने का उत्पादन तमिलनाडु राज्य  में होता है। देश में 80 प्रतिशत चीनी का उत्पादन गन्ने से ही किया जाता  है। इसके अतिरिक्त अल्कोहल, गुड़, एथेनाल आदि भी व्यावसायिक स्तर पर बनाया जाता है।  चीनी की अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक मांग को देखते हुए किसानों के लिए यह फसल अत्यंत लाभकारी होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=XeAxwmy6F0I&t[/embed]

2. चावल यानी धान की फसल

भारत चावल की पैदावार का बहुत बड़ा उत्पादक देश है। देश की कृषि भूमि की एक तिहाई भूमि में चावल यानी धान की खेती की जाती है। चावल की पैदावार का आधा हिस्सा भारत में ही उपयोग किया जाता है। भारत के लगभग सभी राज्यों में चावल की खेती की जाती है। चावलों का विदेशों में निर्यात भी किया जाता है। चावल की खेती मानसून में ही की जाती है क्योंकि इसकी खेती के लिए 25 डिग्री सेल्सियश के आसपास तापमान की आवश्यकता होती है और कम से कम 100 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है। मानसून से पानी मिलने के कारण इसकी खेती में लागत भी कम आती है। भारत के अधिकांश राज्यों व तटवर्ती क्षेत्रों में चावल की खेती की जाती है। भारत में धान की खेती पारंपरिक तरीकों से की जाती है। इससे यहां पर चावल की पैदावार अच्छी होती है। पूरे भारत में तीन राज्यों  पंजाब,पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक चावल की खेती की जाती है। पर्वतीय इलाकों में होने वाले बासमती चावलों की क्वालिटी सबसे अच्छी मानी जाती है। इन चावलों का विदेशों को निर्यात किया जाता है। इनमें देहरादून का बासमती चावल विदेशों में प्रसिद्ध है। इसके अलावा पंजाब और हरियाणा में भी चावल केवल निर्यात के लिए उगाया जाता है क्योंकि यहां के लोग अधिकांश गेहूं को ही खाने मे इस्तेमाल करते हैं। चावल के निर्यात से पंजाब और हरियाणा के किसानों को काफी आय प्राप्त होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=QceRgfaLAOA&t[/embed]

3. कपास की फसल

कपास की खेती भी मानसून के सीजन में की जाती है। कपास को सूती धागों के लिए बहुमूल्य माना जाता है और इसके बीज को बिनौला कहते हैं। जिसके तेल का व्यावसायिक प्रयोग होता है। कपास मानसून पर आधारित कटिबंधीय और उष्ण कटिबंधीय फसल है। कपास के व्यापार को देखते हुए विश्व में इसे सफेद सोना के नाम से जानते हैं। कपास के उत्पादन में भारत विश्व का दूसरा बड़ा देश है। कपास की खेती के लिए 21 से 30 डिग्री सेल्सियश तापमान और 51 से 100 सेमी तक वर्षा की जरूरत होती है। मानसून के दौरान 75 प्रतिशत वर्षा हो जाये तो कपास की फसल मानसून के दौरान ही तैयार हो जाती है।  कपास की खेती से तीन तरह के रेशे वाली रुई प्राप्त होती है। उसी के आधार पर कपास की कीमत बाजार में लगायी जाती है। गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश,हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक,तमिलनाडु और उड़ीसा राज्यों में सबसे अधिक कपास की खेती होती है। एक अनुमान के अनुसार पिछले सीजन में गुजरात में सबसे अधिक कपास का उत्पादन हुआ था। अमेरिका भारतीय कपास का सबसे बड़ा आयातक है। कपास का व्यावसायिक इस्तेमाल होने के कारण इसकी खेती से बहुत अधिक आय होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=nuY7GkZJ4LY[/embed]

4.मक्का की फसल

मक्का की खेती पूरे विश्व में की जाती है। हमारे देश में मक्का को खरीफ की फसल के रूप में जाना जाता है लेकिन अब इसकी खेती साल में तीन बार की जाती है। वैसे मक्का की खेती की अगैती फसल की बुवाई मई माह में की जाती है। जबकि पारम्परिक सीजन वाली मक्के की बुवाई जुलाई माह में की जाती है। मक्का की खेती के लिए उष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त रहती है। गर्म मौसम की फसल है और मक्का की फसल के अंकुरण के लिए रात-दिन अच्छा तापमान होना चाहिये। मक्के की फसल के लिए शुरू के दिनों में भूमि ंमें अच्छी नमी भी होनी चाहिए। फसल के उगाने के लिए 30 डिग्री सेल्सियश का तापमान जरूरी है। इसके विकास के लिए लगभग तीन से चार माह तक इसी तरह का मौसम चाहिये। मक्का की खेती के लिए प्रत्येक 15 दिन में पानी की आवश्यकता होती है।मक्का के अंकुरण से लेकर फसल की पकाई तक कम से कम 6 बार पानी यानी सिंचाई की आवश्यकता होती है  अर्थात मक्का को 60 से 120 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है। मानसून सीजन में यदि पानी सही समय पर बरसता रहता है तो कोई बात नहीं वरना सिंचाई करने की आवश्यकता होती है। अन्यथा मक्का की फसल कमजोर हो जायेगी। भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक में सबसे अधिक मक्का की खेती होती है। छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, जम्मू कश्मीर और हिमाचल में भी इसकी खेती की जाती है।

5.सोयाबीन की फसल

सोयाबीन ऐसा कृषि पदार्थ है, जिसका कई प्रकार से उपयोग किया जाता है। साधारण तौर पर सोयाबीन को दलहन की फसल माना जाता है। लेकिन इसका तिलहन के रूप में बहुत अधिक प्रयोग होने के कारण इसका व्यापारिक महत्व अधिक है। यहां तक कि इसकी खल से सोया बड़ी तैयार की जाती है, जिसे सब्जी के रूप में प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है। सोयाबीन में प्रोटीन, कार्बोहाइडेट और वसा अधिक होने के कारण शाकाहारी मनुष्यों के लिए यह बहुत ही फायदे वाला होता है। इसलिये सोयाबीन की बाजार में डिमांड बहुत अधिक है। इस कारण इसकी खेती करना लाभदायक है। सोयाबीन की खेती मानसून के दौरान ही होती है। इसकी बुवाई जुलाई के अन्तिम सप्ताह में सबसे उपयुक्त होती है। इसकी फसल उष्ण जलवायु यानी उमस व गर्मी तथा नमी वाले मौसम में की जाती है। इसकी फसल के लिए 30-32 डिग्री सेल्सियश तापमान की आवश्यकता होती है और फसल पकने के समय 15 डिग्री सेल्सियश के तापमान की जरूरत होती है।  इस फसल के लिए 600 से 850 मिलीमीटर तक वर्षा चाहिये। पकने के समय कम तापमान की आवश्यकता होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=AUGeKmt9NZc&t[/embed]
संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली जिसे पूसा संस्थान के नाम से जाना जाता है ने अपने 115 वर्षों के सफर में देश की कृषि को सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हरित क्रांति के जनक के रूप में पूसा संस्थान में विभिन्न फसलों की बहुत सारी किस्में निकाली हैं जिनसे हम अपने देश की जनता को संतुलित आहार दे सकते हैं और अपने किसानों के लिए खेती को लाभदायक बना सकते हैं। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए पूसा सस्थान द्वारा निकाली गई कुछ फसलों की मुख्य किस्में व उनकी विशेषताओं के विषय में हम आपको बता रहे हैं।

संतुलित आहार की उन्नत किस्में

धान

Dhan ki kheti 1-पूसा बासमती 1 जिस की पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है 135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। 2-पूसा बासमती 1121 जिसकी पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है एवं 140  दिन में पक जाती है। पकाने के दौरान चावल 4 गुना लंबा हो जाता है। 3-पूसा बासमती 6 की पैदावार 55 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। आप पकने में 150 दिन का समय लेती है। 4-पूसा बासमती 1509 का उत्पादन 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है. यह पत्नी है 120 दिन का समय लेती है. जल्दी पकने के कारण बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. 5-पूसा बासमती 1612 का उत्पादन 51 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है . पकने में 120 दिन का समय लेती है . यह ब्लास्ट प्रतिरोधी किस्म है। 6-पूसा बासमती 1592 का उत्पादन 47.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है .यह पकने में 120 दिन का समय लेती है .बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. ये भी पढ़े: धान की उन्नत खेती कैसे करें एवं धान की खेती का सही समय क्या है 7-पूसा बासमती 1609 का उत्पादन 46 कुंटल पकने का समय 120 दिन व बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रति प्रतिरोधी है। 8-पूसा बासमती 1637 का उत्पादन 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अवधि 130 दिन है । यह ब्लाइट प्रतिरोधी है. 9-पूसा बासमती 1728 का उत्पादन 41.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकाव  अवधि 140 दिन है। वह किसी भी बैक्टीरियल ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है। 10-पूसा बासमती 1718 का उत्पादन 46.4 कुंटल प्रति हेक्टेयर बोकारो अवधि 135 दिन है। यह किस्म बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोध ही है। 11-पूसा बासमती 1692 का उत्पादन 52.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। यह पकने में 115 दिन का समय लेती है। उच्च उत्पादन जल्दी पकने वाली किस्म है।

 गेहूं

gehu ki kheti 1-एचडी 3059 का उत्पादन 42.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर व पकाव अवधि 121 दिन है। यह पछेती की किस्में है। 2-एचडी 3086 का उत्पादन 56.3 कुंटल एवं पकाव अवधि 145 दिन है। 3-एचडी 2967 का उत्पादन 45.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर। वह पकने में 145 से लेती है। 4-एच डी सीएसडब्ल्यू 18 का उत्पादन 62.8 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। पीला रतुआ प्रतिरोधी 150 दिन में पकती है। 5-एचडी 3117 से 47.9 कुंटल उत्पादन 110 दिन में मिल जाता है । यह किस्म करनाल बंट रतुआ प्रतिरोधी पछेती किस्म है। 6-एचडी 3226 से 57.5 कुंटल उत्पादन 142 दिन में मिल जाता है। 7-एचडी 3237 से 4 कुंतल उत्पादन 145 दिन में मिलता है। ये भी पढ़े: सर्दी में पाला, शीतलहर व ओलावृष्टि से ऐसे बचाएं गेहूं की फसल 8-एच आई 1620 से 49.1 कुंदन उत्पादन के 40 दिन में मिलता है। यह कंम पानी वाली किस्म है। 9-एच आई 1628 से 50.4 कुंतल उत्पादन 147 में मिलता है। 10-एच आई 1621 से 32.8 कुंतल उत्पादन 102 दिन में मिल जाता है यह पछेती किस्म है। 11-एचडी 3271 किस्म से कुंतल उत्पादन 104 दिन में मिलता है यह अति पछेती किस्म है पीला रतुआ प्रतिरोधी है। 12-एचडी 3298 से 39 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 104 दिन में मिल जाता है।

मक्का

Makka ki kheti 1-पूसा एच एम 4 संकर किस्म से 64.2 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है । यह पकने में 87 दिन का समय देती है और इसमें प्रोटीन अत्यधिक है। 2-पूसा सुपर स्वीट कॉर्न संकर सै 93 कुंतल उत्पादन 75 दिन में मिल जाता है। 3-पूसा एचक्यूपीएम 5 संकर 64.7 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 92 दिन में मिलता है। बाजरा (खरीफ) 1-पूसा कंपोजिट 701 से , 80 दिन में 23.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 1201 संकर से 28.1 कुंतल उत्पादन 80 दिन में मिलता है।

चना

chana ki kheti 1-पूसा 372 से 125 दिन में 19 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 547 से 130 दिन में 18 कुंतल उत्पादन मिलता है।

अरहर

arhar ki kheti 1-अरहर की पूसा 991 किस्म 142 दिन में तैयार होती है व 16.5 कुंदन उत्पादन मिलता है। 2- पूसा 2001 से 18.7 कुंतल उत्पादन 140 दिन में मिलता है। 3- पूसा 2002 किस्म से 143 दिन में 17.7 कुंतल उपज मिलती है। 4-पूसा अरहर 16 से 120 दिन में 19.8 कुंतल उपज मिलती है।

मूंग (खरीफ)

Mung ki kheti 1-पूसा विशाल 65 दिन में 11.5 कुंतल उपज देती है। यह किस्मत एक साथ पकने वाली है। 2- पूसा 9531 से 65 दिन में 11.5 कुंटल उत्पादन मिलता है। यह भी एक साथ पकने वाली किस्म है। 3- पूसा 1431 किस्म से 66 दिन में 12.9 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है।

मसूर

masoor ki dal 1- एल 4076 किस्म 125 दिन में पकने वाली है । इससे 13.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2- एवं 4147 से ,125 दिन में 15 कुंतल उपज मिलती है। दोनों किस्म  फ्म्यूजेरियम बिल्ट रोग प्रतिरोधी है।

सरसों(रबी)

sarson ki kheti 1-जल्द पकने वाली पीएम 25 किस्म से 105 दिन में 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है। 2-प्रीति बाई के लिए उपयुक्त पीएम 26 किस्म से 126 दिन में 16.4 कुंतल तक उपज मिलती है। 3-41.5% की उच्च तेल मात्रा वाली पीएम 28 किस्म 107 दिन में 19.9 कुंतल तक उपज दे जाती है। 4-कुछ तेल प्रतिशत वाली पीएम 3100 किस्म से 23.3  कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिलती है ।यह पकने में 142 दिन का समय लेती है। 5- पीएम 32 किस्म से 145 दिन में 27.1 कुंतल उपज दे ती है।

सोयाबीन (खरीफ)

soybean 1-पुसा सोयाबीन 9712 किस्म पीला मोजेक प्रतिरोधी है। 115 दिन में 22.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। 2-पूसा 12 किस्म 128 दिन मैं 22.9 कुंतल उपज देती है।

लेखक

राजवीर यादव, फिरोज हुसैन, देवेंद्र के यादव एवं अशोक के सिंह
पत्ता गोभी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

पत्ता गोभी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

जो किसान भाई पत्ता गोभी यानी बंद गोभी की खेती करना चाहते हैं, वे खेती की अन्य सभी तैयारियों के साथ कीट व रोग प्रबंधन के लिये विशेष रूप से कमर कस लें। नकदी फसल की सब्जी की यह खेती बहुत लाभकारी  है लेकिन इसमें कीट व्याधियां इतनी अधिक लगतीं हैं कि उनके लिए प्रत्येक पल सतर्क रहना होता है। जरा सी चूक पर फसल के खराब होने में देरी नहीं लगती है। पहाड़ी व मैदानी क्षेत्रों में होने वाली पत्ता गोभी का सबसे बड़ा लाभ यह है कि बाजार में कीमत घटने के समय खेत में रोक भी सकते हैं, महंगी होने पर काट कर बेच भी सकते हैं। पत्ता गोभी का सबसे अधिक उपयोग सब्जी बनाने में होता है। इसके अलावा सलाद, कढ़ी, अचार, स्ट्रीट फूड, पाव भाजी, आदि चाट आइटम बनाने के भी काम में लाया जाता है। पत्ता गोभी में 1.8 प्रतिशत प्रोटीन,0.1 प्रतिशत वसा, 4.6 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन के साथ बिटामिन ए व विटामिन बी-1, विटामिन बी-2 तथा विटामिन सी पाया जाता है। पत्ता गोभी पेट के रोगों के साथ शुगर डाइबिटीज में लाभदायक होता है। आइए जानते हैं इसकी खेती के बारे में।

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मिट्टी व जलवायु

पत्ता गोभी की खेती वैसे तो सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन जल निकास वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। पत्ता गोभी की खेती के लिये सामान्य जलवायु की जरूरत होती है। अधिक सर्दी और पाले से पत्तागोभी को नुकसान हो सकता है। गांठों के विकास के समय 20 डिग्री के आसपास तापमान होना चाहिये। वर्षा के समय तापमान घटने से पत्ता गोभी की गांठ अच्छी तरह से विकसित नहीं हो पाती है और स्वाद भी खराब हो जाता है।

खेत की तैयारी कैसे करें

किसान भाइयों को चाहिये कि जलनिकासी वाले खेत में सबसे पहले हैरों आदि से खेत की मिट्टी को पलटवा दें जिससे पूर्व की फसल के अवशेष और खरपतवार उसमें दब जायें और खेत को एक सप्ताह के लिए खुला छोड़ दें। इस बीच सिंचाई कर दें। जब दुबारा खरपतवार उगती दिखाई दे तो उसकी दो तीन बार गहरी जुताई कर देनी चाहिये तथा पाटा चला दें। इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। ये भी पढ़े: सीजनल सब्जियों के उत्पादन से करें कमाई

खाद एवं उर्वरक का प्रबंधन

आखिरी जुताई के पहले खेत में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 20 से 25 टन गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट खाद डालनी चाहिये। इसके बाद जब बुवाई होनी हो उससे पहले खेत में 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस, 60 किलो पोटाश लाकर रख लें। बुवाई से पहले आखिरी जुताई के समय फास्फोरस और पोटाश तो पूरी मात्रा डाल दें और नाइट्रोजन की केवल एक तिहाई मात्रा ही डालें।  बची हुई नाइट्रोजन को आधा-आधा बांट लें। उसमें से एक हिस्सा 30 दिन के बाद और दूसरा हिस्सा 50 दिन के बाद खेत में खड़ी फसल पर छिड़क दें।

लाभकारी अच्छी किस्में

पत्ता गोभी के रंग, रूप आकार व पैदावार के आधार पर इसकी किस्मों को कई भागों में बांटा गया है, जो इस प्रकार हैं:-
  1. अगेती किस्में: अगेती फसल के लिए उपयुक्त किस्में गोल्डन एकर, प्राइड आफ इंडिया, पूसा मुक्ता एवं मित्रा, मीनाक्षी आदि प्रमुख हैं।
  2. मध्यम किस्में: मध्यम समय में खेती करने के लिए उपयुक्त किस्में अर्ली ड्रमहेड, पूसा मुक्त, आदि प्रमुख हैं।
  3. पछेती किस्में: लेट ड्रम हेड, डेनिस वाल हेड, मुक्ता, पूसा ड्रम हेड, रेड कैबेज, पूसा हिट, टायड, कोपेन हेगन,गणेश गोल, हरी रानी कोल आदि प्रमुख हैं।
  4. इनके अलावा माही क्रांति, गुड्डी वाल 65, इंदु, एसएन 183, बीसी 90 भी प्रमुख किस्में हैं।
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बीज की मात्रा व अन्य जानकारियां

किसान भाइयों अगेती किस्म की फसलों को लेने के लिए प्रति हेक्टेयर 500 ग्राम की बीज की आवश्यकता होती है जबकि पछेती खेती के लिए 400 ग्राम के आसपास ही जरूरत होती है। इसका कारण यह है कि अगेती किस्म की पौध लगाने में मरने वाले पौधों की संख्या अधिक होती है। इसलिये बीज अधिक लगाया जाता है।

कब-कब की जाती है बिजाई

पत्ता गोभी की फसल साल में दो बार की जा सकती है। इसकी फसल बरसात व गर्मी के लिए अलग-अलग समय पर ली जाती है।
  1. गर्मी के लिए पत्ता गोभी की बिजाई नवम्बर, दिसम्बर व जनवरी में की जाती है।
  2. बरसात के समय पत्ता गोभी तैयार करने के लिए बिजाई मई, जून व जुलाई में की जाती है।
  3. अगेती खेती यानी गर्मी की फसल के लिए अगस्त-सितम्बर के मध्य तक नर्सरी में बीज की बुवाई कर देनी चाहिये। पछेती फसल के लिए सितम्बर व अक्टूबर कर देनी चाहिये। इसी तरह बरसात की फसल के लिए अगेती फसल के लिए मार्च अप्रैल में नर्सरी की तैयारी कर लेनी चाहिये और पछेती किस्मों की फसल के लिए मई-जून में नर्सरी तैयार करनी चाहिये।

नर्सरी की तैयारी व पौधारोपण

एक मीटर लम्बी और ढाई मीटर चौड़ी क्यारी बनायें। इसमें गोबर की खाद और वर्मी कम्पोस्ट का इस्तेमाल करते हुए बीज की बुवाई करनी चाहिये। पौधशाला ऊंचाई पर बनानी चाहिये। लगभग एक माह में पौध तैयार हो जाती है। इसके बाद खेत में क्यारी बनाकर  पौधों का रोपण करना चाहिये। रोपते समय पौधों की लाइन की दूरी एक  फुट होनी चाहिये और पौधों से पौधों की दूरी भी एक फुट ही होनी चाहिये। ये भी पढ़े: कैसे डालें धान की नर्सरी

सिंचाई का प्रबंधन किस प्रकार करें

बुवाई के एक सप्ताह बाद पहली सिंचाई करनी चाहिये। पत्ता गोभी की अच्छी पैदावार के लिए खेत में नमी हमेशा रहनी चाहिये। बरसात के समय किसान भाई आप खेत की स्थिति के अनुसार सिंचाई करें। सीजन में वर्षा समय पर न होने पर प्रत्येक पखवाड़े में एक बार सिंचाई अवश्य करायें। गर्मी के मौसम मे प्रत्येक सप्ताह में खेतों की सिंचाई करायें।

खरपतवार का नियंत्रण कैसे करें

खरपतवार को नियंत्रण करने के लिए किसान भाइयों को खेत की कम से कम चार बार निराई गुड़ाई करनी चाहिये। निराई गुड़ाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि खरपतवार निकालने जो मिट्टी जड़ों से हट जाती है उसे फिर से चढ़ा देना  चाहिये। इसके अलावा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमेथालिन की 3 लीटर मात्रा को  एक हजार लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।

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कीट एवं व्याधियों की रोकथाम

किसान भाइयो पत्ता गोभी की खेती में कीट एवं इल्लियों  की रोकथाम सबसे जरूरी है। पत्ता गोभी में शुरू से ही कीटों का लगना शुरू हो जाता है। यदि समय पर इनका नियंत्रण न किया जा सकता तो फसल पूरी तरह से चौपट हो सकती है। फसलों के लिए सबसे हानिकारक इल्लियों, लूपर्स और कीट अनेक प्रकार हैं,इनमें से प्रमुख कुछ इस प्रकार हैं:-
  1. आरा मक्खी

  2. फली बीटल

  3. पत्ती भक्षक लटें

  4. हीरक तितली

  5. गोभी की तितली

  6. तम्बाकू की इल्ली

उपचार  या रोकथाम: इन सभी इल्लियों व कीटों को नियंत्रण करने के लिए नीम की निबौली का अर्क 4 प्रतिशत या बीटी -1 एक ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिये। जो किसान भाई इन्सेक्टीसाइड से नियंत्रण करना चाहें Ñवो स्पिनोसैड 43 एससी 1 मिलीलीटरप्रति 4 लीटर पानी में या एमामेक्टिन बेंजोएट 5 एससी 1 ग्राम प्रति 2 लीटर पानी में या क्लोरऐन्ट,निलिमोल 18.5 एसासी एक मिली लीटर प्रति 10 लीटर पानी  में या फेनवेलहेट 20 ईसी 1.5 मिलीलीटर प्रति 2 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। पत्ता गोभी के पत्तों को चूस कर पौधे को कमजोर बनाने वाला एक कीट मोयला भी है, जिसकी रोकथाम करने के लिए डाइमेथेएट 30 ईसी 2. 0 मिलीटर प्रति लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 1 मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। आईगलन रोग: इस रोग को डम्पिंग आफ भी कहते हैं। यह रोग अगेती किस्मों की नर्सरी में लगना शुरू होता है। इससे पौधे मरने लगते हैं। इसकी रोक थाम के लिए थाइम या कैप्टान 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिये। रोग के संकेत मिलने पर बोर्डो मिश्रण 2:2:50 या कॉपर आक्सीक्लोराइड को 3 ग्राम प्रतिलीटर पानी में मिलाकर स्पे्र करें। काला सड़न भी बीजों की क्यारी में या नई पौध में लगता है। इससे फूलों व डंठलों में सड़न पैदा होती है। इसकी रोकथाम पत्ता गोभी की बीजों की बुवाई से पहले स्ट्रेओसाक्लिन 250 ग्राम या बाविस्टिन एक ग्राम प्रतिलीटर पानी में घोल कर 2 घंटे तक भिगोकर रखें। उसे छाया में सुखाने के बाद ही बुआई करें।  बाद में रोग के संकेत मिलने पर इन्हीं दोनों दवाओं का छिड़काव करें।

फसल की कटाई

किसान भाइयों जब फसल तैयार हो जाये तब आपको फसल की कटाई यानी पत्ता गोभी की तुड़ाई बाजार भाव देख कर करें। अधिकांश किस्मों की फसलें 75 से 90 दिनों के भीतर तैयार हो जातीं हैं। जबकि कुछ ऐसी किस्में भी हैं जिनकी फसल 55 दिन में ही कटाई के लिए तैयार हो जाती है। पत्ता गोभी के पूरा बड़ा होने पर ही उसकी कटाई करनी चाहिये। पत्ता गोभी अच्छी तरह कड़ा होने पर ही काटा जाना चाहिये। किसान भाइयों पत्ता गोभी की कटाई का समय ठंडा मौसम ही सबसे उपयुक्त होता है। इसको कटाई के बाद छाया या नमी वाली जगह में रखना चाहिये। जिससे काफी समय तक ताजा बना रहे। जब पत्ता गोभी कड़ा हो जाये और उसके पत्ते अलग अलग होने लगे तो तुरन्त काट लेना चाहिये। किसान भाइयों पत्ता गोभी की पैदावार प्रति हेक्टेयर कम से कम 50 टन तो होती ही है। अच्छी किस्म और उचित प्रबंधन वाली खेती से पत्ता गोभी को प्रति हेक्टेयर 70 से 80 टन की भी पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई ..)

कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई ..)

किसान फसल की कटाई के बाद अपने खेत को किस तरह से तैयार करता है? खाद और जुताई के ज़रिए, कुछ ऐसी प्रक्रिया है जो किसान अपने खेत के लिए अप्रैल के महीनों में शुरू करता है वह प्रतिक्रियाएं निम्न प्रकार हैं: 

कटाई के बाद अप्रैल (April) महीने में खेत को तैयार करना:

इस महीने में रबी की फसल तैयार होती है वहीं दूसरी तरफ किसान अपनी जायद फसलों की  तैयारी में लगे होते हैं। किसान इस फसलों को तेज तापमान और तेज  चलने वाली हवाओ से अपनी फसलों को  बचाए रखते हैं तथा इसकी अच्छी देखभाल में जुटे रहते हैं। किसान खेत में निराई गुड़ाई के बाद फसलों में सही मात्रा में उर्वरक डालना आवश्यक होता है। निराई गुड़ाई करना बहुत आवश्यक होता है, क्योंकि कई बार सिंचाई करने के बाद खेतों में कुछ जड़े उगना शुरू हो जाती है जो खेतों के लिए अच्छा नही होता है। इसीलिए उन जड़ों को उखाड़ देना चाहिए , ताकि खेतों में फसलों की अच्छे बुवाई हो सके। इस तरह से खेत की तैयारी जरूर करें। 

खेतों की मिट्टी की जांच समय से कराएं:

mitti ki janch 

अप्रैल के महीनों में खेत की मिट्टियों की जांच कराना आवश्यक है जांच करवा कर आपको यह  पता चल जाता है।कि मिट्टियों में क्या खराबी है ?उन खराबी को दूर करने के लिए आपको क्या करना है? इसीलिए खेतों की मिट्टियों की जांच कराना 3 वर्षों में एक बार आवश्यक है आप के खेतों की अच्छी फसल के लिए। खेतों की मिट्टियों में जो पोषक तत्व मौजूद होते हैं जैसे :फास्फोरस, सल्फर ,पोटेशियम, नत्रजन ,लोहा, तांबा मैग्नीशियम, जिंक आदि। खेत की मिट्टियों की जांच कराने से आपको इनकी मात्रा का भी ज्ञान प्राप्त हो जाता है, कि इन पोषक तत्व को कितनी मात्रा में और कब मिट्टियों में मिलाना है इसीलिए खेतों की मिट्टी के लिए जांच करना आवश्यक है। इस तरह से खेत की तैयारी करना फायेदमंद रहता है । 

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खेतों के लिए पानी की जांच कराएं

pani ki janch 

फसलो के लिए पानी बहुत ही उपयोगी होता है इस प्रकार पानी की अच्छी गुणवत्ता का होना बहुत ही आवश्यक होता है।अपने खेतों के ट्यूबवेल व नहर से आने वाले पानी की पूर्ण रूप से जांच कराएं और पानी की गुणवत्ता में सुधार  लाए, ताकि फसलों की पैदावार ठीक ढंग से हो सके और किसी प्रकार की कोई हानि ना हो।

अप्रैल(April) के महीने में खाद की बुवाई करना:

कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई) 

 गोबर की खाद और कम्पोस्ट खेत के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होते हैं। खेत को अच्छा रखने के लिए इन दो खाद द्वारा खेत की बुवाई की जाती है।मिट्टियों में खाद मिलाने से खेतों में सुधार बना रहता है,जो फसल के उत्पादन में बहुत ही सहायक है।

अप्रैल(April) के महीने में हरी खाद की बुवाई

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले कई वर्षों से गोबर की खाद का ज्यादा प्रयोग नहीं हो रहा है। काफी कम मात्रा में गोबर की खाद का प्रयोग हुआ है अप्रैल के महीनों में गेहूं की कटाई करने के बाद ,जून में धान और मक्का की बुवाई के बीच लगभग मिलने वाला 50 से 60 दिन खाली खेतों में, कुछ कमजोर हरी खाद बनाने के लिए लोबिया, मूंग, ढैंचा खेतों में लगा दिए जाते हैं। किसान जून में धान की फसल बोने से एक या दो दिन पहले ही, या फिर मक्का बोने से 10-15 दिन के उपरांत मिट्टी की खूब अच्छी तरह से जुताई कर देते हैं इससे खेतों की मिट्टियों की हालत में सुधार रहता है। हरी खाद के उत्पादन  के लिए सनई, ग्वार , ढैंचा  खाद के रूप से बहुत ही उपयुक्त होते हैं फसलों के लिए।  

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली फसलें

april mai boi jane wali fasal 

अप्रैल के महीने में किसान निम्न फसलों की बुवाई करते हैं वह फसलें कुछ इस प्रकार हैं: 

साठी मक्का की बुवाई

साठी मक्का की फसल को आप अप्रैल के महीने में बुवाई कर सकते हैं यह सिर्फ 70 दिनों में पककर एक कुंटल तक पैदा होने वाली फसल है। यह फसल भारी तापमान को सह सकती है और आपको धान की खेती करते  समय खेत भी खाली  मिल जाएंगे। साठी मक्के की खेती करने के लिए आपको 6 किलोग्राम बीज तथा 18 किलोग्राम वैवस्टीन दवाई की ज़रूरत होती है। 

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बेबी कार्न(Baby Corn) की  बुवाई

किसानों के अनुसार बेबी कॉर्न की फसल सिर्फ 60 दिन में तैयार हो जाती है और यह फसल निर्यात के लिए भी उत्तम है। जैसे : बेबी कॉर्न का इस्तेमाल सलाद बनाने, सब्जी बनाने ,अचार बनाने व अन्य सूप बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। किसान बेबी कॉर्न की खेती साल में तीन चार बार कर अच्छे धन की प्राप्ति कर सकते हैं। 

अप्रैल(April) के महीने में मूंगफली की  बुवाई

मूंगफली की फसल की बुवाई किसान अप्रैल के आखिरी सप्ताह में करते हैं। जब गेहूं की कटाई हो जाती है, कटाई के तुरंत बाद किसान मूंगफली बोना शुरू कर देते है। मूंगफली की फसल को उगाने के लिए किसान इस को हल्की दोमट मिट्टी में लगाना शुरु करते हैं। तथा इस फसल के लिए राइजोवियम जैव खाद का  उपचारित करते हैं। 

अरहर दाल की बुवाई

अरहर दाल की बढ़ती मांग को देखते हुए किसान इसकी 120 किस्में अप्रैल के महीने में लगाते हैं। राइजोवियम जैव खाद में 7 किलोग्राम बीज को मिलाया जाता है। और लगभग 1.7 फुट की दूरियों पर लाइन बना बना कर बुवाई शुरू करते हैं। बीजाई  1/3  यूरिया व दो बोरे सिंगल सुपर फास्फेट  किसान फसलों पर डालते हैं , इस प्रकार अरहर की दाल की बुवाई की जाती है। 

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां

April maon boi jane wali sabjiyan अप्रैल में विभिन्न विभिन्न प्रकार की सब्जियों की बुवाई की जाती है जैसे : बंद गोभी ,पत्ता गोभी ,गांठ गोभी, फ्रांसबीन , प्याज  मटर आदि। ये हरी सब्जियां जो अप्रैल के माह में बोई जाती हैं तथा कई पहाड़ी व सर्द क्षेत्रों में यह सभी फसलें अप्रैल के महीने में ही उगाई जाती है।

खेतों की कटाई:

किसान खेतों में फसलों की कटाई करने के लिए ट्रैक्टर तथा हार्वेस्टर और रीपर की सहायता लेते हैं। इन उपकरणों द्वारा कटाई की जाती है , काटी गई फसलों को किसान छोटी-छोटी पुलिया में बांधने का काम करता है। तथा कहीं गर्म स्थान जहां धूप पढ़े जैसे, गर्म जमीन , यह चट्टान इन पुलिया को धूप में सूखने के लिए रख देते है। जिससे फसल अपना प्राकृतिक रंग हासिल कर सके और इन बीजों में 20% नमी की मात्रा पहुंच जाए। 

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खेत की जुताई

किसान खेत जोतने से पहले इसमें उगे पेड़ ,पौधों और पत्तों को काटकर अलग कर देते हैं जिससे उनको साफ और स्वच्छ खेत की प्राप्ति हो जाती है।किसी भारी औजार से खेत की जुताई करना शुरू कर दिया जाता है। जुताई करने से मिट्टी कटती रहती है साथ ही साथ इस प्रक्रिया द्वारा मिट्टी पलटती रहती हैं। इसी तरह लगातार बार-बार जुताई करने से खेत को गराई प्राप्त होती है।मिट्टी फसल उगाने योग्य बन जाती है। 

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां:

अप्रैल के महीनों में आप निम्नलिखित सब्जियों की बुवाई कर ,फसल से धन की अच्छी प्राप्ति कर सकते हैं।अप्रैल के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां कुछ इस प्रकार है जैसे: धनिया, पालक , बैगन ,पत्ता गोभी ,फूल गोभी कद्दू, भिंडी ,टमाटर आदि।अप्रैल के महीनों में इन  सब्जियों की डिमांड बहुत ज्यादा होती है।  अप्रैल में शादियों के सीजन में भी इन सब्जियों का काफी इस्तेमाल किया जाता है।इन सब्जियों की बढ़ती मांग को देखते हुए, किसान अप्रैल के महीने में इन सब्जियों की पैदावार करते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे इस आर्टिकल द्वारा कटाई के बाद खेत को किस तरह से तैयार करते हैं , तथा खेत में कौन सी फसल उगाते हैं आदि की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर ली होगी। यदि आप हमारी दी हुई खेत की तैयारी की जानकारी से संतुष्ट है, तो आप हमारे इस आर्टिकल को सोशल मीडिया तथा अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं.

लाखों किसानों को सिखाए जाएंगे उन्नत खेती के गुण, होगा फायदा

लाखों किसानों को सिखाए जाएंगे उन्नत खेती के गुण, होगा फायदा

उत्तर प्रदेश में किसानों की आर्थिक मदद के लिए अब उन्हें उन्नत खेती के गुण सिखाए जाएंगे. इतना ही नहीं इंटरनेशनल मिलेट ईयर को सफल बनाने के लिए यूपी की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होने वाली है. साल 2023 में पूरी दुनिया इंटरनेशनल मिलेट ईयर पूरी दुनिया मना रही है. यह आयोजन भारत की पहल पर हो रहा है. इस आयोजन को सफल बनाने के लिए जोरों पर तैयारियां की जा रही हैं. हालांकि खेती उत्तर प्रदेश में ज्यादातर लोगों की रोजी रोटी का साधन है. उत्तर प्रदेश में दुनिया की सबसे ज्यादा उर्वरतम जमीन है. जोकि गंगेटिक बेल्ड का अधिकांश हिस्सा भी है. इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में ना तो पानी की कमी है, और ना ही मानव संसाधन की, जिसके चलते यहां पर खेती की संभावना भी अच्छी है. उत्तर पदेश मात्र एक ऐसा राज्य है, जिसमें सिर्फ मात्र 11 रकबे का है, और 20 फीसद खाद्यान पैदा करता है. राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी खेती बाड़ी में ज्यादा रूचि है. जिस वजह से अंतरराष्ट्रीय मिलेट को सफल बनाने के लिए यूपी की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर तैयारियां

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ क्र निर्देश के हिसाब से तैयारियां की जा रही हैं. इसके अलावा कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही के निर्देशों का पालन भी किया जा रहा है, उत्तर प्रदेश मिलेटस पुनरोद्धार कार्यक्रम को चलाने के पीछे की मंशा यही है कि, मिलेट्स से जुड़ी पोषण सम्बंधी खूबियों को लोगों तक पहुंचाएं. अच्छे स्वास्थ्य और पोषण सुरक्षा के लिए ज्यादा से ज्यादा लोग इनका किसी ना किसिया रूप से उपयोग उपभोग कर सकें.

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इस योजना के तहत मिलेट्स फसलों में जैसे ज्वार, बाजरा, कोदो, सवा की खेती को बड़े पैमाने में बढ़ावा देने के लिए उचित प्रयास किये जा रहे हैं. यूपी सरकार मिलेट्स पुनरोद्धार कार्यक्रम में करीब 186.27 करोड़ रुपये खर्चा कर रही है. साल 2021 से 2022 में कुल 10.83 लाख हेक्टेयर की एरिया में खास मिलेट्स फसलों का उत्पादन किया जाता है. इसमें बाजरा , ज्वार, कोदो और सावा का रकबा क्यों लाख हेक्टेयर में फैला हुआ है. यूपी की योगी सरकार ने साल 2026 से 2027 तक इनकी बुवाई का रकबा बढाकर तकरीबन 25 लाख हेक्टेयर करने का लक्ष्य तय किया है.

सरकार देगी फ्री में बीज

यूपी सरकार ने आने वाले चार सैलून में ढ़ाई लाख किसानों को फ्री में बीज देने का फैसल किया है. जिसके लिए वो 11.86 करोड़ रुपये भी खर्च करने वाली है. इतना ही नहीं मिलेट्स बीजों के उत्पादन के लिए सरकार की तरफ से साल 2023 से 2024 और साल 2026 से 2027 तक कुल 180 कृषक उत्पादक संगठनों को चार लाख रुपये प्रति एफपीओ (FPO) के हिअब से सीड मनी दी जाएगी. जिससे भविष्य में राज्य में मिलेट्स की तरह तरह की फसलों के बीज को स्थानीय स्तर पर किसानों को उपलब्ध करवा सकेंगे. इतना ही नहीं इस कार्यक्रम के लिए चार सालों में 7 करोड़ से भी ज्यादा की धन राशि खर्च की जाएगी.